तुमने जिसकी जिन्दगी पामाल की
दो इजाज़त उसको अर्जे हाल की
भर लिए दामन में अपने अश्के गम
जिंदगी यूं हमने मालामाल की
इश्क फ़िर फरमाईये किबला हुजूर
फ़िक्र कीजे पहले आटे दाल की
मैं गुजारिश रहम की करता नहीं
दो सजा मुझ्कू मेरे आमाल की
तोड़ कर उड़ जाएगा एक दिन परिन्द
बंदिशे जितनी हैं मायाजाल की
जंग में माँ की दुआएं साथ हैं
क्या ज़रूरत है मुझे अब ढाल की
कम से कम ही बैठ पाती हैं 'मयंक'
पालकी में बेटियाँ कंगाल की ।