शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

गजल -35

सोना सोना है जिसकी अहमियत न पूछी जाय
इश्क करने वालों की हैसियत न पूछी जाय

मेहनतो -मशक्कत से नाम जो कमाते हैं
ऐसे कर्मवीरों की वल्दियत न पूछी जाय

मेरे बारे में उनका फैसला यही होगा
सिर्फ गम दिए जाएँ ,कैफियत न पूछी जाय

कर्ज दूध का क्या है,फर्ज अपना-अपना क्या है
बूढी माँ की ,बेटो से खैरियत न पूछी जाय

डेढ़ ईंट की मस्जिद,सबके अपने अपने मठ
फिर भी लोग कहते हैं ,जहनियत न पूछी जाय

अब सुखन की महफ़िल में ,चाहता है हर शायर
दाद तो मिले लेकिन शेरियत न पूछी जाय

कल ''मयंक ' वो तुझको ढूँढ़ कर बुलायेंगे
ऐसा कैसे मुमकिन है,शख्सियत न पूछी जाय।