वही हालत है इसकी भी कि जो हालत हमारी है
ज़माना तुमको क्या देगा, ज़माना ख़ुद भिखारी है
हमारे गाँव में इंसानियत है, दोस्तदारी है
तुम्हारे शहर में हर शख्स दौलत का पुजारी है
ज़माने भर के गम सारे चले आते हैं घर मेरे
न इनसे दोस्ती अपनी, न कोई रिश्तेदारी है
मुनासिब है करो अपनी हिफाजत शौक़ से, लेकिन
हमें महफूज़ रखना भी तुम्हारी जिम्मेदारी है
हमें मालूम है पत्थर कभी पूजे नहीं जाते
मगर फिर भी तुम्हारी आरती हमने उतारी है
सवारी और सवार आनन्द दोनों ही उठाते हैं
पिता की पीठ पर बच्चा अगर करता सवारी है
ज़माने को पसंद आए न आए, क्या गरज़ हम को
हमारी हर अदा लेकिन हमारी मां को प्यारी है
किसी की कोई भी अब बद्दुआ लगती नहीं मुझको
मेरी मां ने नजर जब से मेरी आ कर उतारी है
विरासत में कुछ भी चाहिए मुझ को मेरे भाई
मेरे हिस्से में गर मां-बाप की तीमारदारी है
मयंक आया न कोई हस्बे-वादा पुरसिशे-गम को
कि हम ने तारे गिन-गिन कर शबे-फुरकत गुज़ारी है.