जो दिल रखते नहीं उनको मुहब्बत हो नहीं सकती
फरिश्तों के मुकद्दर में ये दौलत हो नहीं सकती
मुझे डॉलर से बढ़कर अपनी मिट्टी से मुहब्बत है
परस्तारे-वतन हूँ, मझ से हिजरत हो नहीं सकती
महाभारत हो, करबल हो, यही पैगाम देते हैं
कभी नेकी बदी के बीच बैअत हो नहीं सकती
ये फित्नाकार जितना चाहें उतनी कोशिशें कर लें
कयामत से मगर पहले कयामत हो नहीं सकती
वो जन्नत की गली हो या कोई दीगर हसीं शय हो
मेरे भारत से बढ़कर खूबसूरत हो नहीं सकती
वतन की आबरू जिनको नहीं है जान से प्यारी
कभी सीमाओं की उनसे हिफाजत हो नहीं सकती
ये गूंगापन, ये सजदे, बेड़ियाँ और रेंगते रहना
मैं कैसे मान लूँ यारो बगावत हो नहीं सकती
पड़ोसी के फ़राइज़ गर मयंक अपनाएं हम दोनों
उन्हें हमसे, हमें उनसे शिकायत हो नहीं सकती
गुरुवार, 17 सितंबर 2009
मंगलवार, 1 सितंबर 2009
गजल- 32
वही राहें बनाता है, वही मंज़िल बनाता है
वही राहों पे चलने के हमें क़ाबिल बनाता है
डुबोने से ज़ियादा उसकी ख्वाहिश है बचाने की
तभी तो एक दरिया और दो साहिल बनाता है
बनाता है बड़ी मेहनत से वो दिलकश, हसीं चेहरे
बचाने को नज़र से उन पे काले तिल बनाता है
जनम लेता है इन्सां इस जहाँ में नेकियाँ लेकर
मगर माहौल उसको संत या क़ातिल बनाता है
हया, पर्दा, झिझक, नज़रें चुराना और चुप रहना
न जाने इशक क्यों इंसान को बुज़दिल बनाता है
ग़रीब इंसान जब आसानियों में ढूंढता है हल
तो अपनी मुश्किलों को और भी मुश्किल बनाता है
मयंक इन्सां सबक़ लेता नहीं जो अपने माज़ी से
वो दोज़ख से भी बदतर अपना मुस्तक़बिल बनाता है
वही राहों पे चलने के हमें क़ाबिल बनाता है
डुबोने से ज़ियादा उसकी ख्वाहिश है बचाने की
तभी तो एक दरिया और दो साहिल बनाता है
बनाता है बड़ी मेहनत से वो दिलकश, हसीं चेहरे
बचाने को नज़र से उन पे काले तिल बनाता है
जनम लेता है इन्सां इस जहाँ में नेकियाँ लेकर
मगर माहौल उसको संत या क़ातिल बनाता है
हया, पर्दा, झिझक, नज़रें चुराना और चुप रहना
न जाने इशक क्यों इंसान को बुज़दिल बनाता है
ग़रीब इंसान जब आसानियों में ढूंढता है हल
तो अपनी मुश्किलों को और भी मुश्किल बनाता है
मयंक इन्सां सबक़ लेता नहीं जो अपने माज़ी से
वो दोज़ख से भी बदतर अपना मुस्तक़बिल बनाता है
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