तअस्सुब के अंधेरों को मिटायें तो उजाला हो
कोई दीपक मुहब्बत का जलाएं तो उजाला हो
उदासी का अँधेरा हर तरफ छाया है महफिल में
वो आकर अंजुमन में मुस्कुराएँ तो उजाला हो
जिन्होंने चाँद सा चेहरा छुपा रक्खा है घूंघट में
वो घूंघट अपने चेहरे से हटायें तो उजाला हो
अभी तो जहन-ओ-दिल पर बदगुमानी की सियाही है
यकीं वो अपनी चाहत का दिलाएं तो उजाला हो
ये कैसी शर्त रख दी है चमन के बागबानों ने
की हम ख़ुद आशियाँ अपना जलाएं तो उजाला हो
चरागों की हर इक लौ आज तूफानों की जद में है
हिफाजत ख़ुद करें इनकी हवाएं तो उजाला हो
मयंक इतना अँधेरा है हताशा और निराशा का
कोई सूरज उमीदों का उगायें तो उजाला हो ॥
जबरदस्त मयंक भाई..बहुत उम्दा गज़ल.
जवाब देंहटाएंhan apna aashiyan khud jalaye ujala ho........
जवाब देंहटाएंbahut bahut khoob kaha hai
मयंक जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
पढ़ कर मज़ा आगया
बहुत बहुत आभार