वही हालत है इसकी भी कि जो हालत हमारी है
ज़माना तुमको क्या देगा, ज़माना ख़ुद भिखारी है
हमारे गाँव में इंसानियत है, दोस्तदारी है
तुम्हारे शहर में हर शख्स दौलत का पुजारी है
ज़माने भर के गम सारे चले आते हैं घर मेरे
न इनसे दोस्ती अपनी, न कोई रिश्तेदारी है
मुनासिब है करो अपनी हिफाजत शौक़ से, लेकिन
हमें महफूज़ रखना भी तुम्हारी जिम्मेदारी है
हमें मालूम है पत्थर कभी पूजे नहीं जाते
मगर फिर भी तुम्हारी आरती हमने उतारी है
सवारी और सवार आनन्द दोनों ही उठाते हैं
पिता की पीठ पर बच्चा अगर करता सवारी है
ज़माने को पसंद आए न आए, क्या गरज़ हम को
हमारी हर अदा लेकिन हमारी मां को प्यारी है
किसी की कोई भी अब बद्दुआ लगती नहीं मुझको
मेरी मां ने नजर जब से मेरी आ कर उतारी है
विरासत में कुछ भी चाहिए मुझ को मेरे भाई
मेरे हिस्से में गर मां-बाप की तीमारदारी है
मयंक आया न कोई हस्बे-वादा पुरसिशे-गम को
कि हम ने तारे गिन-गिन कर शबे-फुरकत गुज़ारी है.
'सवारी और सवार आनन्द दोनों ही उठाते हैं.
जवाब देंहटाएंपिता की पीठ पर बच्चा अगर करता सवारी है."
मयंक साहब, आपने तो कलम तोड़ दिया. बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आये. क्या हम कद्रदानों से कोई नाराजगी है?
वाह..वाह..वाह ....और क्या कहूं. ज़बान और कलम दोनों हैरान हैं. ऐसा भी हटा है.
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल...बधाई..मयंक जी..
जवाब देंहटाएंनीरज
हमारे गाँव में इंसानियत है, दोस्तदारी है
जवाब देंहटाएंतुम्हारे शहर में हर शख्स दौलत का पुजारी है
वाह......वाह.....!!
ज़माने को पसंद आए न आए, क्या गरज़ हम को
हमारी हर अदा लेकिन हमारी मां को प्यारी है
बहुत खूब......!!
मयंक आया न कोई हस्बे-वादा पुरसिशे-गम को
कि हम ने तारे गिन-गिन कर शबे-फुरकत गुज़ारी है.
हस्बे ... .? अर्थ भी लिख देते तो आसानी होती .....!!
क्या बात है भाई. बेहतरीन शेर. उम्दा ग़ज़ल. सद शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंमयंक जी
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद
कैसे हो सकते हो कम?
तुम भी लखनऊ वाले हो
पूछ रहे थे लोग हमे
क्यों आज हुए मतवाले हो ?
वाह वाह आनंद आ गया
हर रंग यहाँ मौजूद मिला
वाह! अपको ब्लाग पर देख कर बहुत अच्छा लग रहा है. मैंने जब लिखना शुरू किया तब तक आप आगरा छोड चुके थे. एक बार बस सूरसदन में सुना. अभी तक थोडा सा याद है-
जवाब देंहटाएं-----------मेरी तक़दीर क़ातिब,
मेरे सीने के हर हिस्से पे हिन्दुस्तान लिख देना. शायद यही था. आपका अंदाज़, आपकी आवाज़ अभी तक ज़ेहन में है. आज बहुत ख़ुशी हो रही है. दादा सरवत जी आपका ज़िक्र करते रहते हैं. ग़ज़ल पर टिप्पणी करने की हैसियत नहीं है मेरी.
हमें मालूम है पत्थर कभी पूजे नहीं जाते
जवाब देंहटाएंमगर फिर भी तुम्हारी आरती हमने उतारी है
बहुत खूब. करीने से आरती उतारने का पत्थार्दिली शुक्रिया.
इस शानदार औरl मुकम्मल ग़ज़ल के हर शेर बधाई के पात्र है. बहुत कुछ साबित करके छोडा है आपने अपनी इस दमदार ग़ज़ल में.
बधाई! बधाई!! बधाई!!!
मयंक जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार . . . .
आपकी ग़ज़ल पढ़ कर दिली सुकून हासिल हुआ
एक-एक शेर अपने आप में मुकम्मिल है
मफहूम भी अच्छे चुने हैं
और उन्हें बखूबी निभाया भी है
"असर-आमेज़ लहजा है, खयालो-लफ्ज़ उम्दा हैं
रिवायत की हिफाज़त है, ग़ज़ल की पासदारी है"
---मुफलिस---