मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

ग़ज़ल 12

प्यार सबसे हुज़ूर हमने किया
सिर्फ़ इतना कसूर हमने किया

उनके दानिस्ता पास जा बैठे
ख़ुद को ख़ुद से ही दूर हमने किया

दिल को टकरा दिया था पत्थर से
आइना चूर चूर हमने किया

प्यार करना गुनाह है फिर भी
यह गुनह भी हुज़ूर हमने किया

चार दिन की थी जिंदगी, मालूम
फिर भी इस पर गुरूर हमने किया

हम ही मकतूल भी हैं, कातिल भी
कत्ल ख़ुद को हुज़ूर हमने किया

दें सज़ा शौक़ से वो हमको मयंक
आदमी हैं, कसूर हमने किया

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