शनिवार, 11 अप्रैल 2009

ग़ज़ल 9

इश्क में क्या खोया क्या पाया मैं भी सोचू तू भी सोच
क्यों ये तसव्वुर ज़हन में आया मैं भी सोचूँ तू भी सोच।
हर चेहरे पर चेहरा हो तो कैसे हम यह पहचाने
कौन है अपना कौन पराया मैं भी सोचूँ तू भी सोच ।
कब्र में जाकर मिट्टी में मिल जाने वाली मिट्टी को
यारों ने फिर क्यों नहलाया मैं भी सोचूँ तू भी सोच।
तू भी कातिल मैं भी कातिल मकतल हम दोनों के दिल
किसने किसका खून बहाया मैं भी सोचूँ तू भी सोच।
फूल खिलाता था जो कल तक आज वो कांटे बोता है
फ़र्क़ आख़िर यह कैसे आया मैं भी सोचूँ तू भी सोच।
दुनिया भी एक सरमाया है उक़बा भी इक सरमाया
कौन सा अच्छा है सरमाया मैं भी सोचूँ तू भी सोच।
जब तक सूरज सर पे नहीं था साथ मयंक के चलता था
पाँव तले अब क्यों है साया मैं भी सोचूँ तू भी सोच।

3 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका सादर स्वागत है.... सुन्दर ब्लॉग...

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  2. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

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  3. Behtareen alfaazme sajee ek kamaalkee rachna..! Aur shbd nahee mere paas..
    Shubhkamnayon sahit swagat hai..
    shama

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