जो तिरंगे को करना नमन छोड़ दें
उनसे कह दो वो मेरा वतन छोड़ दें।
पंचशील और अहिंसा के हामी हैं हम
क्यों खुलूसो-वफा के चलन छोड़ दें।
'सूर' , 'गालिब' , 'कबीरा' के वारिस हैं हम
क्यों मुहब्बत के लिखना सुखन छोड़ दें।
शहरे कातिल में रहकर मुनासिब नहीं
बाँधना हम सरों से कफन छोड़ दें।
हिंद गौरी के शोलों से डर जाएगा
देखना आप ऐसे सपन छोड़ दें।
ऐ 'मयंक' अब यही वक्त की मांग है
एक दूजे से रखना जलन छोड़ दें।
waah waah bahut hee sundar gazlein likhee hain..nischit roop se taareef kee hakdaar hain..
जवाब देंहटाएंदेशभक्ति के जज्बो से परिपूर्ण उम्दा रचना . बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया गजल है।बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह जी, बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंjitanee aaj gazal padhee hain sab se behatreen gazal apki kalam ko slam badhaai
जवाब देंहटाएंbahut hi saarthak or samyik rachna
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