तेरी बस्ती में लगता मन नहीं है
यहाँ लोगों में अपनापन नहीं है।
लगाएं हम कहाँ तुलसी का पौधा
हमारे घर में अब आँगन नहीं है।
खिलौने तब कहाँ थे खेलने को
खिलौने हैं तो अब बचपन नहीं है।
किधर से आ रहे हैं घर में पत्थर
पड़ोसी से मेरी अनबन नहीं है।
जलाते हैं इसे हर साल हम सब
मगर मरता कभी रावन नहीं है।
धड़कने को धड़कते दिल हैं फिर भी
दिलों में प्यार की धड़कन नहीं है।
करो मत अपने जिस्मों की नुमाइश
ये भारत है, कोई लन्दन नहीं है।
क्यों अपने आप से अनजान है वो
क्या उसके हाथ में दर्पण नहीं हैं।
करे तनकीद जो शेरो पे मेरी
'मयंक' इतना किसी में फन नहीं है.
खिलौने हैं तो अब बचपन नहीं हैं...वाह!
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की कड़वी सच्चाई से रूबरू करा रहे हैं आपके दर्द भरे अल्फ़ाज़
जवाब देंहटाएंbahut sundar hai aa kee gajal.
जवाब देंहटाएं