बुधवार, 25 मार्च 2009

ग़ज़ल-7

फना ख़ुद बढ़ के देती है बका ,ऐसा भी होता है
"दिए को जिन्दा रखती है हवा ऐसा भी होता है"

कोई हिकमत न काम आए तो हाथ ऊपर दीजे
दवा का काम करती है दुआ ऐसा भी होता है

कफस की जिन्दगी अगर रास आ जाए परिंदे को
रिहाई भी लगे उसको सजा ,ऐसा भी होता है

झपकती ही नहीं पलकें किसी की भूख के मारे
हमारे घर में अक्सर रतजगा ,ऐसा भी होता है

नहाए जब कोई मजदूर मेहनत के पसीने से
लगे लू भी उसे बादे-सबा,ऐसा भी होता है

कसीदे कौन लिखता है किसी की बेवफाई के
मुहब्बत में मगर ऐ बेवफा ऐसा भी होता है

बगावत पर उतर आता है जब तश्ना-दहन कोई
उठा लेता है सर पर मयकदा ऐसा भी होता है

सजाए मौत मिलती है सदाकत के फरिश्तों को
तुम्हारे शहर में ऐ दोस्त क्या ऐसा भी होता है

अकीदत की नजर से जब किसी पत्थर को देखोगे
लगेगा फ़िर 'मयंक ' ऐसा ,खुदा ऐसा भी होता है।


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