हर इक से जताते हुए डर लगता है
छीन कर मुझ से कहीं तोड़ न डाले जालिम
आइना उस को दिखाते हुए डर लगता है
मेरे घर में भी कहीं लोग न फेंकें पत्थर
पेड़ आंगन में लगाते हुए डर लगता है
लोग दर पर भी तेरे आते हैं तलवार लिए
सर को सजदे में झुकाते हुए डर लगता है
और मगरूर न हो जाए सितम पर अपने
हाले गम उसको सुनाते हुए डर लगता है
कैसे पुर्सिश को मयंक आयेंगे वह रात गये
जिनको ख्वाबों में भी आते हुए डर लगता है
लोग दर पर भी तेरे आते है तलवार लिये
जवाब देंहटाएंसजदे मे सिर झुकाते हुये भी डर लगता है
सरी गज़ल ही खूब सूरत है बधाई