मौत के पैकर में ढलने दीजिये
चींटियों के पर निकलने दीजिये
ख़ाक हो जाएगा इक दिन ख़ुद बखुद
हम से जो जलता है, जलने दीजिये
जोश जो दिल में हमारे है, उसे
जंग के पैकर में ढलने दीजिये
देखता है ख्वाब जो कश्मीर का
उसको ख्वाबों में ही पलने दीजिये
ठोकरें खा कर गिरेंगे मुंह के बल
झूठ की राहों पे चलने दीजिये
जो मेरी आंखों में चुभते है मयंक
मुझको वो कांटे कुचलने दीजिये
ठोकरें खा कर गिरेंगे मुंह के बल
जवाब देंहटाएंझूठ की राहों पे चलने दीजिये
बहुत सुन्दर। वाह। चलिए मैं भी कुछ जोड़ दूँ-
मुँह के बल गिरने से सुधरेंगे क्या।
खूब इनको हाथ मलने दीजिये।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंबहुत दम है आपकी बातों में...!अच्छी रचना...
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