शुक्रवार, 29 मई 2009

गजल- 24

मत किसी का बुरा कीजिये
हो सके तो भला कीजिये।


है मरज़ इश्क का लादवा
मेरे हक में दुआ कीजिये ।


ये मुहब्बत भी क्या खूब है
बेवफा से वफ़ा कीजिये।

लोग जिसको मिसाली कहें
कोई ऐसी खता कीजिये।

अक्ल को दख्ल देने न दें
दिल कहे वह कहां कीजिये ।

साफगोई बजा है मगर
क्यों किसी को खफा कीजिये।

जो लगाये बुझाए 'मयंक'
उससे बचकर रहा कीजिये।

1 टिप्पणी:

  1. साफगोई बजा है मगर
    क्यों किसी को खफा कीजिये।

    बहुत खूब शेर कहा है मयंक साहेब...पूरी ग़ज़ल ही आसान लफ्जों में गहरी बातें कर जाती है...दाद कबूल करें
    नेर्राज

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