माना कि एक संग हूँ , शंकर नहीं हूँ मैं
लेकिन किसी की राह का पत्थर नहीं हूँ मैं
आवारगी है मेरा मुकद्दर तो क्या हुआ
सबके दिलों में रहता हूँ, बेघर नहीं हूँ मैं
सबके लबों की प्यास बुझाता हूँ रात दिन
दरिया हूँ मीठे जल का, समन्दर नहीं हूँ मैं
आते नहीं हैं मुझको सियासत के दांव पेंच
राही हूँ राहे इश्क का, रहबर नहीं हूँ मैं
गरचे मेरी उड़ान फलक तक है ऐ मयंक
दुनिया की बंदिशों से भी बाहर नहीं हूँ मैं
bahot khub kahi aapne ye gazal... badhaayee
जवाब देंहटाएंarsh
आते नहीं हैं मुझको सियासत के दांव पेंच
जवाब देंहटाएंराही हूँ राहे इश्क का, रहबर नहीं हूँ मैं
गरचे मेरी उड़ान फलक तक है ऐ मयंक
दुनिया की बंदिशों से भी बाहर नहीं हूँ मैं
बहुत ख़ूब. ये शेर तो ब-तौर-ए-ख़ास
आवारगी है मेरा मुकद्दर तो क्या हुआ
जवाब देंहटाएंसबके दिलों में रहता हूँ, बेघर नहीं हूँ मैं
-बेहतरीन!!
जाँ कट ले गयी आपकी ग़ज़ल\
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें