मेरी मय्यत पर आ जाना पहन के जोड़ा शादी का
दुनिया वाले भी तो देखें ज़श्न मेरी बर्बादी का
हुस्न और इश्क के बीच में हरदम चांदी की दीवारे हैं
रास कहाँ मुफलिस को आता प्यार किसी शहजादी का
देख के मेरी हालत मौसम की भी आँखें नम हैं आज
तुम भी तडप उठोगे सुनकर जिक्र मेरी बर्बादी का
दूर कफस से हूँ मैं लेकिन यादे माजी में हूँ कैद
मतलब गलत लगा बैठे हैं लोग मेरी आजादी का
किसकी अदालत में वह जाए किससे मांगे अब इन्साफ
कोई भी पुरसा हाल नहीं है आज यहाँ फरियादी का
जो भी चाहो शौक से पहनो तन पर लेकिन दीवानों
तार तार तुम मत कर देना पैराहन आजादी का
मुद्दत से मैं भटक रहा हूँ नफरत के सहरा में 'मयंक'
काश कोई रस्ता दिखला दे चाहत की आबादी का।
वाह उस्ताद वाह, आपने तो कमाल कर दिया।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
shandaar ..........bahut badhiya.
जवाब देंहटाएंmayankji.....nihal kar diya aapne
जवाब देंहटाएंbahut hi umda ghazal....
BADHAIYAN
सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंवीनस केसरी