क्या पीरी क्या दौरे जवानी
चार दिनों की रामकहानी।
घाट पे जब भी पापी पहुंचा
गंगा हो गई पानी-पानी।
लाख इसे समझाया लेकिन
दिल ने की अपनी मनमानी
घूम रहे हैं कासा लेकर
क्या जनता क्या राजा-रानी।
तेरी यादें ऐसी महकें
रात में जैसे रात की रानी।
तर्के-मुहब्बत तौबा-तौबा
मत करना ऐसी नादानी ।
ड़ूब गई जब दिल की किश्ती
थम गई मौजों की तुग्यानी।
मुझको मयंक ऐसा लगता है
मर गया सबकी आँख का पानी ।
रचना अच्छी ही नहीं बहुत ही अच्छी लगी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंईमेल से भेज सकें अथवा लिंक बना पांए तो आभारी रहूंगा।
घाट पे जब भी पापी पहुंचा
जवाब देंहटाएंगंगा हो गई पानी-पानी।
तेरी यादें ऐसी महकें
रात में जैसे रात की रानी।
बहुत कमाल के शेर कहें है मयंक जी आपने...बहुत बहुत बधाई...
नीरज
ganga ho gayi pani pani....waah waah waah .....
जवाब देंहटाएंbaat toh yahin poori ho gayi janaab, baaki ghazal toh alag se uphar hai...
bahut khoob,
BADHAI
मुझको मयंक ऐसा लगता है
जवाब देंहटाएंमर गया सबकी आँख का पानी ।
बहुत अच्छा मयंक जी।
इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में।
दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढ़लता रहा।।
सादर
श्यामल सुमन
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shyamalsuman@gmail.com